मै कलकत्ता हूँ, महानगर कलकत्ता!
जी हाँ, वेस्ट बंगाल की राजधानी ! 2011 तक मेरी जनसँख्या लगभग 4.497 मिलियन हो चुकी थी! हुगली नदी के किनारे पर खड़ा मै आज अपने साथ हुई इस दर्द भरी घटना पर अंदर ही अंदर पीड़ा महसूस कर रहा हूँ, जो सदा अपने सुंदरवन डेल्टा (मैन्ग्रोव वनस्पति से भरा हुआ और दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा / वर्ल्ड हेरिटेज साईट) को देखकर मुस्कुराया है ! विक्टोरिया मेमोरियल हॉल (कलकात्ता की सबसे बड़ी मार्बल बिल्डिंग) में एक डर पसरा है! एडन गार्डन मुझसे नजर नही मिला पा रहा जैसे मै दोषी हूँ ! साइंस सिटी (जो कलकत्ता को इंडियन subcontinent में सबसे बड़ा साइंस सेण्टर बनाता है) आज हैरान है तो वहीँ मेरे हावड़ा ब्रिज की आँख में आंसू है! इंडियन मयूसिएम (देश का सबसे पुराना व् बड़ा मयूसिएम है) साँस लेने में तकलीफ महसूस कर रहा है ! यूँ तो दुनिया में मै अपनी प्रसिद्ध अपनी गगनचुंबी इमारतो के साथ साथ अपनी मीठी बंगला भाषा से विश्व और भारत में अपनी सभ्यता, संस्कृती को भी कायम करते हुए धीरे धीरे विकास की दिशा में अग्रसर था लेकिन आज मौन हूँ! खामोश हूँ! गला रुंधा सा है मेरा!
देश के अन्य सिटी के जैसे ही यहाँ पर भी कही तो जगमगाती सड़क है और कही पर अपना वजूद खोजती अंधी गलिया ! कई तरह के अन्धविश्वास व श्रद्धा का सिटी भी मुझे तुम कह सकते हो! मेरे आगोश कही अमीर तबका air कंडीशन, लम्बी गाडियो के साथ जिन्दगी बिता रहा है, वही, भूख, गरीबी के मंजर भी है ! आजादी के बाद 25 साल कांग्रेस और 34 साल वामपंथियो के हाथ में मेरी डोर रही और मै हमेशा एक अच्छी, ईमानदार पतंग के रूप में उड़ा हूँ ! जो पुल ढह गया है वो मात्र एक पुल नही था बल्कि सैकड़ो जिन्दगिया गुजर –बसर करती थी उसके नीचे ! ये लोग मेरे थे, मेरे जिगर के टुकडे, मेरे दिल की रौशनी जिनसे मिलकर ही मेरा अस्तित्व बनता है ! कितने दबे- कितने मरे, कितने अस्पतालों में आखिरी सांसे गिन रहे है! एक तरफ चीत्कार है तो वही दूसरी और राजनीतिक हलचले भी तेज है !
हादसा , दुर्घटना, या भ्रष्ट लोगो की ये कारगुजारी है या कुछ और- ये तो वक्त ही तय करेगा...मगर जो गया वो तो गया! किसी बच्चे को अपने बाप का इंतजार है तो कोई बाप अपने बेटे के लिए दर बदर भटक रहा है! कई बहने सहमी है की अब राखी किसकी कलाई पर सजेगी? किसी माँ की आँखों से आंसू रुक ही नही रहे! वो जिन्दगी जो इसी पुल के नीचे छत और आसमान को अनुभव करती थी वही छत लील जाएगी उनकी जिन्दगी किसको अंदाजा था ! पीड़ा – दुख तो पहले भी बहुत देखे है मैने मगर अफ़सोस इस बात का है आज की इतनी आधुनिकता, technology, और विचारशील देश में भी मेरे सिने पर इस तरह का हादसा हो सकता है!
मै सिटी ऑफ़ जॉय भी हूँ और राजीव गाँधी का dying city भी! जाने चर्चिल ने क्या देखकर अपनी माँ से बोला के मै एक अजीम शहर हूँ ! बहुत लोगो ने मुझे को अलग अलग नजर से देखा और कहा भी! किपलिंग के अनुसार मै एक खौफनाक और डरावनी रातो का सिटी हूँ ! ” वायसराय राबर्ट क्लाइव ने मुझे न जाने क्यों “कायनात की सबसे बुरी बस्ती करार दिया ! विलियम हंटर ने अपनी प्रेमिका को लिखा था ” तसव्वुर करो उन तमाम चीजों का , जो फितरत में सबसे शानदार है । और उसके साथ साथ उन समाम अनासिर का जो तामीर के फन में सबसे ज्यादा हसीन होते है । फिर तुम अपने आप कलकत्ता यानि मेरी एक धुंधली सी तस्वीर देख लोगी । मशहूर शायर ग़ालिब की आशिकी तो मुजसे इस कदर हुई की उसने कहा –
“कलकत्ता का जो जिक्र किया तूने हमनशीं /
इक तीर मेरे सीने में मारा कि हाय हाय /
वह सब्जाजार हाए मुतर्रा कि है गजब /
वह नाजनी बुताने-खुद आरा कि हाय हाय ” !
किसी ने मुझे कुछ कहा, किसी ने कुछ! मैने सबका नजरिया स्वीकार किया है! क्युकी इन्ही सब लोगो ने मिलकर मुझे बनाया है अच्छा – बुरा जैसा भी ! और मै लोगो से अथाह प्रेम करता हूँ ! मुझे मालूम है मेरा अस्तित्व मेरे लोगो से है जिनकी रूह मुज्मे बस्ती है, जो मुजमे साँस लेते है, ये मेरी भीड़ ही तो मेरी पहचान है ! सबसे भीड़ वाला बड़ा बाजार जहा ये निर्माणाधीन पुल गिरा है, यूँ लगता है मेरा सर ही मेरे लोगो पर गिर गया हो ! मुझमे इतनी भीड़ क्यों है ? शायद यही हूँ मै ! कुछ भी रहा मगर मैने लोगो को हमेशा जोडने की कोशिश की है, एक सूत्र में बांधा है सबको! सायद ये मेरी भाषा बंगला का ही करिश्मा है! जिसको यूनिसेफ दुनिया की सबसे मीठी भासा कहता है! मै प्रतीक हूँ औघोगिक क्रांति का! मै हिंदुस्तान के विकास का गीत हूँ!
पुल ढहा है, और राजनीती ? जो फ्लाईओवर गिरा है उसकी नीव
2009 में रखी गई थी! जिसको
2012 में अंतिम रूप दे दिया जाना था मगर सरकार बदल जाने के कारण और लम्बाई बढने के कारन अब तक जिसका निर्माण जरी था ! गिरने से पहले तक इस फ्लाईओवर का लगभग 70 % निर्माण पूरा हो चूका था ! बड़ा बाजार जहाँ ये पुल गिरा उधोग, व्यापार का सबसे बड़ा बाजार है! ये पुल न जाने कितनी जिंदगियो की छत बना हुआ था ! मुझे तो आज सियासत से भ्रस्ताचार की गन्दी बू आ रही है! पर मै इतना बेबस – बेहाल हूँ की अपना दुखड़ा भी नही रो सकता! और इस काले मनहूस दिन का गवाह हूँ मै , इसी पुल के नीचे कई रिक्शा वाले, गरीब, गाडिया, ट्रैक दब गए! हाय ! मेरी व्यथा ! मेरे लोगो में तो वैसे ही इतना विरोध था, कही गरीबी, भूख, हिंसा, वह्सत, आपसी टकराव जिससे मै नही उभर पा रहा और अब ये हादसा !
मै भ्रष्ट राजनीती का विरोध करता हूँ, अपने बेटो की मौत पर श्रद्दांजलि देता हूँ और अपने लोगो से जोश के साथ कहता हूँ की होश संभालो, जागो, उठो और मुजमे एक नयी साँस भर दो, बंगाल के बेटो जागना ही एक मात्र रास्ता है!
एक नयी रौशनी की तलाश में आपका शहर कलकत्ता
No comments:
Post a Comment